आज सुबह जब आँख खुली और रोज की तरह फेसबुक खोला तो एक जोर का झटका लगा, तेलंगाना के नामचीन कवि,सामाजसेवी एवं व्यवसाई घनश्याम पाण्डेय जी के इस दुनिया से चले जाने की खबर थी,जिसे उनके बड़े बेटे जुगल पाण्डेय ने अपने वाल पर पोस्ट की थी. जिसे पड़कर कुछ देर तक अवाक रह गया कि यह सब कैसे हो गया. पर होनी को कोई टाल सकता नहीं ... श्री घनश्याम पाण्डेय जी मेरे अभिन्न मित्र थे,मित्र क्या बड़े भाई की तरह थे. सन दो हज़ार में जब मैं ने निज़ामाबाद से प्रकाशित एक हिंदी दैनिक के सम्पादकीय विभाग का कार्यभार सम्हाला था ,तभी से आप का स्नेह व प्यार मिलता रहा . राजस्थान के मूलतः रहने वाले श्री पाण्डेय जी का हिन्दी भाषा से लगाव होना स्वाभाविक ही था. तीस -चालीस पहले निज़ामाबाद (तब आन्ध्र प्रदेश में हुआ करता था ) इन्दुर हिन्दी समिति का गठन किया था ,जिसके तहत कई कार्यक्रम आयोजित किया गए थे. सैकड़ों कवितायेँ लिखी ,लेकिन आत्मसुखाय के लिए. मेरे आग्रह पर ही मुझे उन्होंने उक्त दैनिक में प्रकाशन के लिए दी. पिछले कई सालों से बीमार चल रहे थे. तीन बार दिल का दौरा पड़ चूका था ,चौथी बार अभी रविवार को पड़ा था. आज सुबह 4.55 पर उन्होंने ने अंतिम सांस ली. अगर आप को संयुक्त परिवार का जीता जागता उदाहरण देखना हो तो उनके परिवार में देखा जा सकता है . लगभग बीस लोगों का परिवार ,सभी की रसोई एक ही ,जिसकी कमान उनकी पत्नी के हाथ में. वेसे ऐसे कई परिवार आज भी निज़ामाबाद में देखने को मिलेंगे.
अभी कोरोना के पहले ही तो उनसे मिला था,तब पहला दिल का दौरा पड़ा था उनको, फिर भी वह अपने को स्वस्थ ही बता रहे थे. आज उनके बारे में लिखने को मेरी उंगलियां जवाब दे रहीं हैं, लिखा ही नहीं जा रहा है. बहुत कुछ लिखना है उनके बारे में ,अपने ब्लॉग 'कथानक डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम पर . मन व्यथित है. घनश्याम भाई साहब को बस नमन ही तो कर सकता हूँ. ईश्वर इस दुःख की घडी को उनके परिवार को सहन करने की सकती दे,यही प्रार्थना करता हूँ.
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