लखनऊ: 20 अक्टूबर, 2022 (वसुंधरा पोस्ट). डॉ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ की 104वीं जयन्ती के शुभ अवसर पर डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निश्ंाक’ अध्ययन संस्थान एवं उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधन में जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया। श्री उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में श्रीमती प्रतिमा भारती को डॉ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ साहित्य सम्मान से एवं प्रो0 कमला श्रीवास्तव को विद्या मिश्र लोक संस्कृति सम्मान से समादृत करते हुए प्रत्येक को ग्यारह-ग्यारह हजार रूपये की धनराशि, मानपत्र, स्मृति चिह्न उत्तरीय भंेट की गयी। इस अवसर पर वाणी वन्दना की प्रस्तुति श्रीमती मीनाक्षी शुक्ल द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों को उत्तरीय एवं स्मृति चिह्न भेंट कर स्वागत किया गया। संस्थान के अध्यक्ष डॉ. कमला शंकर त्रिपाठी ने अभ्यागतों का स्वागत किया। आमंत्रित कवियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत डॉ. आलोक मिश्र द्वारा किया गया।
डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक’ अध्ययन संस्थान द्वारा प्रकाशित ‘निशंक सुरभि’ वार्षिक पत्रिका, डॉ. निशंक जी के ब्रजभाषा काव्य ‘बूड़ि गयो मन राम के रंग मैं’ तथा श्री केशव प्रसाद वाजपेयी की पुस्तक ‘जनमत’ (कविता संग्रह) का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।इस अवसर पर डॉ. निशंक साहित्य सम्मान से सम्मानित श्रीमती प्रमिला भारती ने डॉ. निशंक जी की कविताओं का सस्वर पाठ किया। विद्या मिश्र लोक संस्कृति सम्मान से सम्मानित प्रो. कमला श्रीवास्तव ने डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक’ की पुस्तक ‘साधना के स्वर’ से एक कविता - ‘साधना के इन स्वरों में रागिनी बन समाओ...।’’ का सस्वर पाठ किया।
डॉ. निश्ंक जी की पुस्तक ‘बूड़ि गयो मन राम के रंग मैं’ पर डॉ. उमाशंकर शुक्ल ‘शितिकण्ठ’ ने सारगर्भित व्याख्यान दिया। इसके उपरान्त प्रो. उषा सिन्हा ने ‘लोकगीतों में अभिव्यक्त संस्कृति एवं पर्यावरण’ विषय पर व्याख्यान दिया। समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि श्री उदय प्रताप सिंह ने कहा - निशंक जी ने अपनी कविता और आदर्शो से समाज में उच्च जीवन मूल्यों और आदर्शों की स्थापना करने का महान कार्य किया है। वे अपनी श्रेष्ठ रचनाओं में सदैव जीवित रहेंगे। उनको सादर नमन। इस अवसर पर लोकभाषा काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें डॉ. उमाशंकर शुक्ल ‘शितिकण्ठ’ (ब्रजभाषा) ने पढ़ा - कबौं बेदरिचा मैं अनूप सुयौं, अपरूप सुन्यौ कबौं साहन मैं/कबौं पाहन मैं दुरे देख्यौं तुम्हैं, ऊबौं देख्यौं सनेत की चाहत मैं/कबौं दाहन मैं बिलखात लख्यौं, मुसकात प्रतीति की बाँहन मैं/कबौं देखिहौं रावरी रूप घटा, ब्रज रेनू छटा रची राहन मैं। डॉ. सुरेश (हिन्दी) ने पढ़ा - जो मिलन के पर्व बन आये कभी थे/वे विदा के गीत बनकर रह गये हैं।
श्री शिवमंगल सिंह ‘मंगल’ (बुन्देली) ने पढ़ा - सबको राम जुहार हमारी, अब चलिबे की बारी/रामनगर की डगर कठिन है, सोकर लयि तैयारी/खोटे सिक्के वहाँ न चलहैं, ना ही मिलै उधारी/सदकर्मन की लयी पुटरिया, कछु लै लयि रिजगारी। श्री ब्रज मोहन प्रसाद ‘अनारी’ (भोजपुरी) ने पढ़ा - शीश सम्मान में झुकावत बानीं/सद्गुन गुनगुना के गावत बानीं/लक्ष्मीशंकर जी ‘निशंक’ जी के/आपन सरधा सुमन चढ़ावत बानीं। श्री राम किशोर तिवारी (अवधी) ने पढ़ा - जीवन बोझ भवा जिनकै चहुंओर भई जिनके अंधियारी/एक दिया वहिके अंगना बरि जाय तो जानौ भई है देवारी। श्रीमती प्रमिला भारती (हिन्दी) ने अपनी प्रसिद्ध रचना रिटायर्मेंट की प्रस्तुति की। श्री उदय प्रताप सिंह ने अपनी प्रसिद्ध कविताओं के माध्यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। धन्यवाद ज्ञापन श्री अनिल मिश्र ने एवं संचालन श्री पद्मकान्त शर्मा ‘प्रभात’ ने किया।